“……s s ….! मिल नहीं पायी इन्क्रीमेंट, बहुत पॉलिटिक्स है..!”
“सिलेंडर नहीं मिल पाया आज भी, बड़ी राजनीति है, भाई !”
“पॉलिटिक्स पढ़ते हो, इसमें तुम्हारी ही कोई राजनीति होगी…..!”
ये जुमले खूब सुने होंगे, आपने l और यह भी सुने होंगे-
“तुम ज्यादा मत उड़ो, अच्छे से समझते हैं तुम्हारी साइकोलॉजी……! “
“अपनी इकोनॉमिक्स खंगाल लो, आर्डर देने से पहले….! “
“जियोग्राफी देखी है अपनी, जो मॉडलिंग करने चले हो…! “
और ये भी सुना होगा आपने कभी कभी –
“तेरी पर्सनालिटी की फिजिक्स समझता हूँ, शांत ही रहो..! “
“तेरी उसकी केमिस्ट्री के चर्चे हैं बड़े…..! “
“तेरा मैथ कमजोर है पर गणित बहुत तेज है, शातिर कहीं का ….!”
हम सामान्य व्यवहार में शब्दों का बड़ा ही अनुशासनहीन प्रयोग करते हैं l इसमें इतना भी कुछ गलत नहीं l एक सीमा तक इससे भाषा को प्रवाह मिलता है, नए प्रयोग उसे लोकप्रिय और समृद्ध बनाते हैं l किन्तु शब्दों का चयन वक्ता के परसेप्शन को जरुर ही स्पष्ट करता है l ऊपर लिखे वाक्य यह अवश्य बताते हैं कि वक्ता ‘विषय-उपविषय-शास्त्र’ की मूल समझ तो नहीं ही रखता है l उसे नहीं पता, कि कितनी सामान्य सी बात कहने के लिए उसने कितने महान शब्दों का प्रयोग किया है l ऐसा नहीं है कि उसके पास दूसरे शब्द नहीं हैं, किन्तु यह निश्चित है कि उसे शास्त्र की महत्ता का भान तो नहीं ही है l
अध्ययन का उद्देश्य कठिन से सरल की ओर ले जाना है l जानने को विषय अनगिन हैं l उन विषयों के भीतर फिर जाने कितने उपविषयों के पट खुलते हैं l खास विषयों को एक वैज्ञानिक विधि से अध्ययन करने का स्थान शास्त्र है, जहाँ एक खास अनुशासन लागू होता है, जो उसके उपागमों से व्यक्त होता है l जानने लायक बात यह भी है कि विज्ञान अब एक विषय या अनुशासन ही नहीं रह गया है बल्कि एक ऐतिहासिक आन्दोलन के बाद अब यह एक सर्वसम्मत विधि (method) के तौर पर स्थापित है l इसलिए विज्ञान का अर्थ केवल फिजिक्स, केमिस्ट्री से नहीं है, इसे तो प्राकृतिक विज्ञान कहते हैं l इन्हीं अर्थों में राजनीति के शास्त्र को राजनीति विज्ञान भी कहते हैं, अर्थात राजनीतिक विषयों का वैज्ञानिक रीति से अध्ययन l
थोड़ी सी कहीं षडयंत्र की बू आयी, हम बोलते हैं राजनीति हो गयी l राजनीति का शाब्दिक अर्थ ही लोप हो गया हो जैसे l राजनीति का अर्थ राज्य की नीति से है, जिसका अध्ययन राजनीति शास्त्र कहलाता है l राजनीति भले ही नकारात्मक अर्थों में रूढ़ हो गयी हो पर अब भी यह है एक शास्त्र ही l राजनीति शब्द का पतन, निश्चित तौर पर यह दिखाता है कि समाज राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं है, लोग राजनीति से घृणा करते हैं, शरीफ लोग राजनीति में नहीं आना चाहते, यह दिखाता है कि ज्यादातर लोग राजनीति में भाग लेना नहीं चाहते l राजनीति इतनी महान कला है जो सभी के हितों को एक ही समय में पूरा करने की कोशिश करती है, इससे अछूता रहा ही नहीं जा सकता l आप सब्जी बेचते हों या जमीन बेचते हों, आप पैदल चलते हों या उड़ते हों जहाज में, राजनीति आपको गहरे छूती है l आप आठ घंटे ही काम करते हैं अपनी पूरी कुशलता के साथ पर फिर भी बचत कम होती जाती है, ध्यान दीजिये, कहीं किसी दूर बैठे नीति निर्माताओं की वज़ह से आपके रुपये की कीमत कम हो गयी है, आपके बैंक में रखे पैसे की अहमितयत अब उतनी नहीं रह गयी है l बड़ी मेहनत से एम. बी. ए. की डिग्री ली है आपने तुरंत इंजीनियरिग की डिग्री के बाद, एक जापान की कम्पनी का ठेका हाथ आता है आपको आपकी काबिलियत की वज़ह से और अचानक ही आपके दफ्तर के पास दंगे भड़क उठते हैं, आप समझ नहीं पाते अब क्या करें…उस जापानी ठेके का क्या, जो है- वह भी चला जाता है….और आप शान से सभ्य-शरीफ आदमी बनते हुए चुनाव के दिन वोट डालने नहीं जाते तो दरअसल आप नहीं समझते कि राजनीति क्या होती है l आप राजनीति से घृणा करते हैं तो शायद आपको नहीं पता कि कहीं गहरे आप अपने ही विरुद्ध खड़े हैं l आप वोट डालने जाते हैं क्योंकि सहसा यह एक स्टेटस सिम्बल है, एफबी पर अपडेट डालना है, पर आप वोट देते हैं अपनी पिछड़ी मान्यताओं के ही आधार पर, तो माफ़ करिए आप काबिल हैं पर राजनीतिक समझ आपकी जीरो है l अगर आपको लगता है कि ऐसे ही चल जायेगी आपकी जिन्दगी तो शायद आप कभी नहीं जान पाएंगे कि घर में चूहे कहाँ से आ रहे हैं l
सामान्य विधि की जानकारी ना होने से आप जानते हैं कि वकील आपके महंगे जूतों के तलवे घिसा देता है l सामान्य वित्त की जानकारी ना होने से आप जानते हैं कि बचत की सेंध आप कटने से रोक नहीं पाते l सामान्य चिकित्सा नहीं आने पर आपसे फर्स्ट-ऐड नहीं हो पाता, और डॉक्टर आपको डांटता है कि पढ़े लिखे हैं आप, फिर भी मरीज को इतना कुछ सहना पड़ा l ठीक उसी तरह से राजनीति शास्त्र का ए. बी. सी. डी. नहीं आने से ही पिछले ६६ सालों से नेता बदल रहे, नारे बदल रहे पर विकास का परिवर्तन नहीं हो रहा-आपको यह बात समझ में नहीं आती; जल्दी से ठीकरा किसी और पर फोड़ आप रिमोट से चैनेल बदलने लग जाते हैं l ये नहीं समझना चाहते आप-हम क्योंकि जैसे उम्र अधिक हो जाने पर साक्षर होने की चाह धुंधली हो जाती है उसी प्रकार अब हम राजनीति पढ़ना नहीं चाहते बस बोलना चाहते हैं और करना चाहते हैं l राजनीति की सामान्य समझ तो रखनी ही होगी l
राजनीति एक और विडम्बना की शिकार है, हालाँकि यह उसकी तरलता और व्यापकता भी व्यक्त करती है कि- अपना मत रखने का अधिकार सभी को है पर यहाँ राजनीति के एक्सपर्ट सभी हैं l मेडिसिन पर हम डॉक्टर की राय लेना चाहते हैं, विधि पर अधिवक्ता की, प्राविधि पर अभियंता की पर राजनीति पर राजनीतिक विश्लेषक की राय हम नहीं लेना चाहते l आप मानिए अपने ही मत को पर राजनीतिक विश्लेषक की आवश्यकता को गौड़ मत समझिये l राजनीतिक समझ के लिए उसकी भी उतनी ही आवश्यकता है l एक ऐसे समाज में जहाँ भेद-भावों की इतनी लम्बी फेहरिश्त है उसमे एक शास्त्रगत भेदभाव भी है l आज भी प्राकृतिक विज्ञान को सामाजिक विज्ञान से ऊँचा दर्जा दिया जाता है l जाने कितने प्राकृतिक विज्ञान विषयों के पिता अरस्तु ने राजनीति दर्शन को मास्टर साइंस कहा है l ये समझने वाले बात है कि प्लेटो की अकेदेमिया में दर्शन पढने के लिए गणित की परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती थी l बड़े बड़े ग्रीक गणितज्ञ महान दार्शनिक भी थे; पाइथागोरस, प्लितिनी, आदि l पहले ज्ञान और बोध पर ही काम होता था l अध्ययन की सुविधा के लिए ज्ञान के विभाग बांटे गए l कालांतर में ये विभाजन इतने कड़े हो गए कि सभी एक दूसरे के बिना दिशाहीन होने लगे और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद समस्त विश्व के विचारकों ने माना कि सभी शास्त्रों को इंटर-डिसीप्लीनरी अप्रोच अपनाना होगा l अभी भी बहुत से पढ़े लिखे लोग भी यह अप्रोच नहीं अपनाना चाहते, जिसे दो दो विश्व युद्धों की विभीषिका के बाद सीखा गया था l जानना यह भी चाहिए कि प्राकृतिक विज्ञान विषय स्टेटस कोइस्ट(Status Quoist)कहलाते हैं और कला विषय डायनामिक कहलाते हैं l
जैसे एक व्यक्ति को उसकी दिनचर्या के उचित निर्वहन के लिए प्रत्येक वस्तु और सभी सूचनाएँ महत्त्व रखती हैं, ठीक उसी प्रकार व्यक्ति के समुचित बोध के लिए सभी शास्त्रों की सामान्य जानकारी अपेक्षित है l इन सबमे राजनीति का सर्वाधिक पतन हुआ है, हमें राजनीति शास्त्र की सामान्य समझ बनानी होगी, राजनीति में भाग लेना होगा, राजनीतिक प्रक्रियाओं का ज्ञान रखना होगा अन्यथा यह स्थान अकुशल लोगों का होगा, और फिर जिस मीडिया का काम रिपोर्टिंग का है वह मुद्दे पकड़ाने लग जाती है, जिस जज का काम न्याय का है वह कानून बनाने लग जाता है, और जिस पुलिस का काम कानून पालन कराने का है वह न्याय करने लग जाती है…और हम सोचते हैं कि इसमें हमारी क्या गलती….इस देश का कुछ नहीं हो सकता l राजनीति एक शास्त्र भी है, जिसकी सामान्य जानकारी ही आपको जिम्मेदार नागरिक बनाती है और आपके राष्ट्र राज्य में तभी सुशासन आ सकता हैl
साभार: न्यूजकैप्चर्ड.कॉम