नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Sunday, February 19, 2017

खटखट में ही पानी पीना होता है...!

'थर्स्टी' पेंटिंग :जॉयस ब्लांक 
चिलचिलाती धूप, दूर दूर तक बस खेत। लम्बी यात्रा से आता एक घुड़सवार, अंजुरी भर जल की आशा में किसी तरह अपने प्यासे घोड़े को हांके जा रहा था। सहसा एक खेत में किसान दिखा। घुड़सवार की जान में जान आयी और लपककर वह किसान के पास पहुंचा। 'भाई, यहाँ कहीं पीने को पानी मिलेगा, घोड़ा भी प्यासा है, बड़ी दूर से आ रहे हैं!' किसान ने गौर से देखा हांफते घोड़े और परेशान घुड़सवार को। किसान ने पास के रहट (सिंचाईं के लिए प्रयुक्त एक देसी यंत्र जिसे बैल खींचते हैं, ख़ट-खट की आवाज के साथ सिंचाईं होती है ) की ओर ईशारा किया। घुड़सवार ने रहट पर जाकर छककर पानी पीया। सच में, जल ही जीवन है। अब घोड़ा भी पानी पी ले, फिर तनिक विश्राम कर आगे निकला जा सकता है। घोड़े ने पानी पीने के लिए मुंह लगाया, खट की आवाज हुई, घोड़ा चिहुंककर ठिठक पड़ा। रहट से खटखट की आवाज आती रही, घोड़ा ठिठकता रहा, पानी पी ना सका। परेशान घुड़सवार किसान के पास पहुँचा, परेशानी बतायी। किसान ने कहा-'भइया, इसी खटखट में ही पीना पड़ेगा, पानी; रहट ऐसे ही चलती है, तभी पानी निकलता है।'

यह प्रेरक प्रसंग आदरणीय डॉ. सुरेन्द्र दुबे जी ने हमें गोरखपुर विश्वविद्यालय के एक एन.एस.एस. के कार्यक्रम (२००३  ) में सुनायी थी। जीवन यों ही चलता है, कुछ करना है और इंतजार है कि खटखट रुक जाए, तो ऐसा कभी नहीं होगा। इसी खटखट में ही पानी पीना होता है। इस प्रेरक प्रसंग ने जब तब मुझे राह दिखाई है। 


(डॉ. श्रीश)

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