नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Monday, March 27, 2017

#2# नोटबंदी में आशिक़ी : हिमाद्री बरुआ

नोटबंदी में आशिक़ी

भाग- 2 



तो आप लोगों की दुआ कुछ ऐसी रंग लाई की तीन दिन बाद वो दिख गया.

लेकिन आज कतार में वो इतनी आगे खड़ा था कि मुड़ कर देखे तो भी नज़र ना आऊँ, हाँ.. मैं लेट हो गई, करीब एक-डेढ़ घंटा लगा लीजिए. सुबह सब्ज़ी को लेकर पिताजी के नखरों से चिक चिक करती माँ, कढ़ी में हींग का तड़का लगाने-ना लगाने की संसदीय बैठक और कर्नाटक के मिनिस्टर रेड्डी का अपनी बेटी की में 500 करोड़ का खरचा इसी सब मे मैं फस गई थी. सच कहूं तो मैंने हिम्मत नहीं हारी थी और आखिरी  ट्राय मारने मैं आज फिर चली गई नोटबंदी की कतार में.. ( कल रात तो लंबू का सपना भी देख डाला: (धत्त वैसा वाला नही ) 

बिना नहाए, एक आँख में फैला हुआ काजल, पाजामा डाले, चप्पल पहन और हाथ में एक कलम पकड़ कर यूँ ही चल दी. दिल्लगी का आलम तो देखिए, मात्र 1000 रूपए बदलवाने चली, जो की आसानी से जल बोर्ड के दफ्तर में जमा हो जाते.. लेकिन दिल के कबूतर की गुटरगूँ तो आपने भी सुनी होगी. पहुंची तो इतनी लंबी कतार देख कर मानो अपनी किस्मत को ही सौतन मानने का मन किया.. अंदर वीर ज़ारा के गाने बजने लगे की इन 20 लोगो की झाड़ियों को लांघ कर कैसे उस गन्ने तक पहुँचूँ.. मीठा, रसीला गन्ना आज हाफ पैंट में था और मेरी नज़र उसकी टांगों की तरफ.

मेरी हालात उस आदमी के जैसी हो रही थी जिसने लड़की को इम्प्रेस करने के चक्कर में 4 बोतलें बियर की चढ़ा ली हो और रेस्टोरेंट में यूनिसेक्स बाथरूम हो और आगे 5 लड़कियाँ खड़ी हो. बस मैं कुछ ऐसे ही मचल रही थी और अपने हाव भाव छुपाने की कोशिश भी कर रही थी. 1 घंटा 12 मिनट.. मैं खड़ी रही और वो खुबानी के बीज का कड़वा बादाम एक बार भी पीछे नहीं मुड़ा. जब मुझे यह पक्का हो गया ये हाफ पैंट पीछे मुड़ेगा नहीं.. मुझे ही कुछ तिकड़म लगाना पड़ेगा और फ़ोन कॉल सबसे मस्त होता है.

फ़ोन उठा कर फ़र्ज़ी कॉल लगाते हुए कहा "हाँ मम्मी.. लाइन में खड़ी हूँ.. हेल्लो.. हाँ मम्मी.. "
आगे खड़े लड़के से कहा, भईया आपके पीछे खड़ी एक मिनट में आई कह कर आगे चली गई कि उसकी नज़र में तो आऊँ. फिर कान में खाली फ़ोन लगाए आगे निकल गई.. कनखियों से उसको देखा, और आगे जा कर बाल खोल लिए.. मन ही मन सोचने लगी.. हाय!! नहा लेना चाहिए था.... चुड़ैल तो नही लग रही.. फिर कोने में जा कर फ्रंट कैमरा ऑन किया और आँखों के नीचे का फैला हुआ काजल साफ़ किया. बालों को तो सेट किया और मटकती हुई बिना उसकी तरफ देखे वापस आने लगी की उसकी नज़र मुझ पर पड़ जाए.

लेकिन कहाँ जनाब 2000 के नए नोट की तरह थे और  मैं "पैसे हैं लेकिन पैसे नहीं हैं" वाली हालात में थी.
यहाँ थोड़ी बेशरमी की जरूरत थी और मैंने ही उसके पास जा कर बोल दिया "Oh hi ! You again !"
हाय.. वो मुस्कराहट.. वो बोला "hello, you got your change?"
"Oh no, not yet.. I'm standing way behind you.. guess, would be taking more than 2 hours after you.."

ये मारा मैंने टिपिकल लौंडियों वाला इमोशनल कार्ड और वैसा वाला मुँह. बस गन्दी वाली झंड होती अगर वो "ओके" बोल कर बात ख़त्म कर देता.

"Oh.. okay" वो बोला.. बस फुस.

मन ही मन सोचा लो अब क्या करोगी.. कंटीन्यू दी कन्वर्सेशन बेबी!

"Yeah! And I'm badly getting late for an interview.. it's scheduled for 2 PM.. guess I have to miss it!!"
अजी काहे का इंटरव्यू..! जो आया दिमाग में फिट कर दिया बस.
"Oh! That's bad.. you wanna come ahead me? If it help?"

देखो!! वैसे तो मैं बहुत शांत और संभली हुई कन्या हूँ लेकिन उस वक़्त मानो मेरी मन की मुराद बुधवार वाले भगवान ने सुन ली.. मेरा दिल उस कुत्ते की तरह ख़ुशी से लोट रहा था जिसका मालिक सारे दिन भर के बाद ऑफिस से घर आया हो.
"That would be a great help!  But umm.. " मैंने एक्सेंट झाड़ते हुए बोला और वो समझ गया मैं लोगो की बात कर रही हूँ!

किसी को बीच में घुसा लो तो जनता खाप पंचायत सी भड़कती है जैसे मैं दूसरी जाती की लड़की हूँ और दूजे जाती के लड़के से प्यार कर बैठी!

"It's okay.. just come!"  बस.. उसका यह कहना और मेरा छोटे से बच्चे की तरह बीच में घुस जाना..
और शुरू हो गया हल्ला!! मैंने होंठ दबा लिए की बेज्जती करवा कर पीछे जाना पड़ेगा और उसके सामने भी इम्प्रैशन की मट्टी पलीत होगी.. तभी वो भारी सी आवाज में बोला "क्या दिक्कत है? एक घर के हैं फैमिली है!!"
उसका यह कहना था और बस मैं तो सर से पांव तक ब्याह करने के लिए तैयार हो गई थी.
मुझे उसमे सारे अच्छे गुण दिखने लगे.. और "फॅमिली है" हाय.. शादी ऐसे होगी और बच्चे ऐसे होंगे और हनीमून यहाँ और लॉन्ग ड्राइव वहां. मतलब मेरे गाल फूल कर भटूरा बन गए थे और दिल ऐसे बच्चे की तरह उछल रहा था "मिल गया.. मिल गया..मिल गया.. ये !!!"

देखो!! वैसे तो मैं बेहद शर्मीली कन्या हूँ लेकिन कभी कभी बेशर्म होना पड़ता था!!
एक मेरी अंतर आत्मा उस बेस्ट फ्रेंड की तरह है जो हमेशा नेगेटिव ही कहेगी उस लड़के के लिए जिसको भी मैं डेट करुँगी और ज़िन्दगी भर आपको "डिज़रविंग मैन" के लिए सिंगल रखेगी और साथ में यह डायलॉग जरूर चिपकायेगी "देख मैं तेरी बेस्ट फ्रेंड हूँ और तुझे मुझसे अच्छा कोई नहीं जानता.. दैट गाए इस नॉट गुड फ़ॉर यू.. यू डिज़र्व बेटर" (लड़कियों वाली बात है, वो समझ जाएँगी)
तो मेरी उसी अंतर आत्मा ने थप्पड़ मारा और सोचने पर मजबूर किया "अबे बहन बनाने की तो नहीं सोच रहा.. फ़ेमिली बोल रहा है"

खैर..चिक चिक करते लोग चुप हो चुके थे "अब सिर्फ वो और मैं और ये नोटबंदी की कतार"
हम 2 घंटे लाइन में खड़े रहे.. जनाब का नाम कबीर है..
देखो! मैं बड़ी शांत किस्म की कन्या हूँ, लेकिन कभी कभी शैतानी करनी पड़ती है..
अब 6 फुट लंबा इंसान पीछे खड़ा हो तो बातों में कुछ अजब की लचक आ जाती है..
दो घंटों में मैंने बहुत कुछ किया है, जल्द ही बताती हूँ पहले रात के खाने वाली चिक चिक से ज़रा निपट लूँ..
तब तक आप मुझे बताइये, इन जनाब को पटाने के नुस्खे.

(क्रमशः)















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