नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Wednesday, March 29, 2017

#3# नोटबंदी में आशिक़ी : हिमाद्री बरुआ

भाग-l
भाग-2

भाग-3 
(आख़िरी भाग)



तो बात कुछ ऐसी हुई के लाईन में उसने मुझे अपने आगे बड़े रौब से खड़ा कर लिया और मेरे दिल में कबूतर फिर से फड़फड़ाने लगे. मेरा हाल 13 साल की उस लड़की की तरह था जो अपनी क्लास में जिस लड़के को सबसे ज्यादा पसंद करती थी उसी से बात नहीं करती थी, अजीब सी हिचकिचाहट. दिल में एक हूक यह थी कि हाय मेरे ज़ालिम कबूतर तू ही कुछ बात कर. मैंने बड़ी मेहनत करी थी यहाँ तक पहुंचने के लिए और मेरा इंतज़ार भी कम न था!
हालांकि मुझे दढ़ियल लौंडे पसंद नहीं आते लेकिन इसमें कुछ बात थी, और मुझे फ़वाद ख़ान तो कतई पसंद नहीं है.. शायद इसकी वो भारी आवाज़! देखो! ऐसे वक़्त में एक लड़की के दिल और दिमाग में कई सारी जलेबियाँ तल रही होती हैं.. एक तो सामाजिक परिधियों का डर दूसरा इतनी सारी जनता! यह ठीक वैसा ही संकोच था जैसा किसी भी लड़के को होता है जब उसे कोई लड़की पसंद आती है, वह सिर्फ उसे जानना चाहता है, वो कौन है.. लेकिन लड़कों की सोशल रेपुटेशन तो ऐसी है मानो उसने आगे बढ़ कर "hi!" क्या बोला लड़की उसको मौकापरस्त रेपिस्ट समझ लेती है.

मैं मौकापरस्त रेपिस्ट नहीं लगना चाहती थी!
हाँ वो मुझे पसंद आया.
तो जनाब, बात वहीं की वहीं आ गई.
टप्पा मार के नाला तो कूद लिया आगे कहाँ जाए. अब तक मैंने ही बात शुरू की, आगे बढ़ी, और इतने सिग्नल दिए, मंदबुद्धि बालक तो नहीं कुछ समझ ही नहीं रहा! 
मेरी अंतरआत्मा वाली बेस्ट फ्रेंड ने फिर झपड़िया दिया मुझे "देखो बाबू, ई लौंडा इंट्रस्टीड ना हौ, चौपसी नै कराओ और चुप खड़ी रहो"

तो हमने सोच लिया जब तक अब यह नहीं कुछ बोलेगा, हम नहीं बोलेंगे. स्त्री स्वाभिमान और वर्चस्व का पर्दा मुझपर हावी होने लगा. तभी पीछे से धक्का लगा और वो थोड़ा सट सा गया. हाय!!! मेरा स्त्री स्वाभिमान मेरे दांतो के बीच होंठ बन कर दब गया और मेरे गालों पर गड्ढ़े बन गए.

उसने हलके से कहा.. "सॉरी"
मैंने भी मुस्कुरा कर कहा दिया "इट्स ओके"
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मेरा पहल न करने का डिसीजन मेरे गालों के गड्ढो में डूबता सा जा रहा था और पेट की तितलियाँ गले तक आ कर गेम ऑफ़ थ्रोन के ड्रैगन बन चुकी थी! सब्र टूटा और मैं तपाक बोल पड़ी.. "आप एग्ज़क्टली कहाँ रहते हैं"
"214, सेकंड फ्लोर" "ओह!.. लेकिन आप कभी दिखे नहीं.. व्हाट डू यू डू?"
"गुड़गांव के आईटी फर्म में हूँ.. और तुम?"
हाय!! आप से तुम.. कितना सुन्दर तुम था यह.
मैं स्कॉलर हूँ.. रिसर्च कर रही हूँ! मैंने कहा.

अच्छा! किस कंपनी में? उसने पूछा..
मैं ऐसे प्रश्न से थोड़ा झेंप गई लेकिन फिर खुद को समझाते हुए मैंने कहा.." पीएचडी रिसर्च स्कॉलर"
ओह! पढ़ाकू टाइप्स हो!! नाइस नाइस.
तो करती क्या हो?
मैं समझ चुकी थी अबोध बालक को इस बारे में कुछ ज्ञात नहीं है! कोई बात नहीं.

"कुछ नहीं.. वेल्ली हूँ" हाहा.. कह कर मैंने बात टाल दी.
"हाहाहा.. काश मैं भी वेल्ला होता.."
मैंने सिर्फ मुस्कुरा दिया.
होता है, होता है!! बेहद मामूली बात है.
अब अगर मैं किसी नैनोबायोटेक्नोलॉजी इंजीनियर से बात करूँगी तो वो भी मुझे वैसाखिनन्दन समझेगा.

"तुम कहाँ रहती हो?"
"आपने वो चौहान हलवाई देखा है?"
"हाँ"
"बस उसकी अगली गली में"
मेरे दिल में अभी भी यह सवाल कौंध रहा था, कही यह शादीशुदा तो नहीं!!
"तो आप अकेले रहते हैं यहाँ पर?"

लीजये, छोड़ दिया मैंने तीर! आर या पार.. 10 सेकंड के अंदर मैंने उसके "हाँ" के लिए मन्नतें मांग ली, 33 करोड़ देवी देवता को याद कर लिया और एक टक लगाए उसकी आँखों में जवाब देखती रही..
हाँ.. फ़िलहाल!
ये फ़िलहाल क्या होता है? मतलब क्या बनता है यह हाँ के साथ फ़िलहाल जोड़ने का.. मतलब क्या बाल विवाह हुआ था और अब घर ढूढ़ लिए शहर में तो बहुरिया का गौना करवा के लाओगे? मन ही मन में खीज गई!

फ़िलहाल? मतलब आपकी वाइफ अभी हैं नहीं यहाँ..?
मैंने झुंझुलाहट में सीधी तलवार खींच दी!
"हाहा.. नहीं, मेरी शादी नहीं हुई है अब तक.."
देखो और समझो ये वाली फीलिंग.
'गवर्नमेंट एग्जाम क्लियर हो गया'
मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और आवाज़ में वोही चहक वापस.
"ओह! ओके.. फिर, भाई या पेरेंट्स?"

अब मुझे फील हुआ मैंने ज्यादा पर्सनल क्वेश्चन पूछ लिए,थोड़ा इस ज़ुबान को लगाम देदेनी चाहिए..
"मेरा पार्टनर" वो बोला..
अरे तेरी! इसको भी कहीं स्टार्टअप का भूत तो नहीं?
कहीं यह उन लौंडों की तरह तो नहीं जो फेसबुक पर लिख के रखते हैं "works at I'm my own boss" या "Ceo and MD at my own business"

आज कल औंतरप्रीनियोर का मतलब होता है आपके भेजे में एक धाँसू बिज़नस या मोबाइल एप्प का आईडिया है लेकिन उसको भुनाने के लिए अभी तक कोई बकरा नहीं फसा है!!
"Okayyy" कह कर मैंने भी "हाँ मैं समझ गई " वाली टोन दे दी.
"so what do you do in your free time? Hobby? Gaming? Gym?" उसने बात बढ़ाई.

लड़के ने इंटरेस्ट ले लिया भाई! अब भाव खाने का टाइम आ चुका है.. आ जाओ अपने लड़की अवतार में।
देखो और समझो. हम लड़कियां बड़ी स्मार्ट होती हैं, देखने में चाहे कैसी भी हो.. जैसे ही पता चलता है कि पतंग हवा में पहुँच चुकी है बस डोर खींच ली. और इस बात में कोई दो राय नहीं की इस नखरे में मज़ा बहुत आता है.
"Yeah.. many!!" मैंने आँखे ततेरते हुए कहा.. और मन में सोचने लगी "पके हुए घीये के बीज.. तुझे किस षष्टिकोन से मैं जिम जाने वाली महिला लगती हूँ!

खैर.. इन्ही छोटी छोटी बातों, मोबाइल टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक मनी,केजरीवाल और मोदी के कारनामे.. ममता दीदी और अखिलेश यादव के ड्रामे.. सोनम गुप्ता की बेवफाई और काले धन के ताने बाने में मेरा नंबर आ चुका था.. मैंने हज़ार का नोट चेंज करवाया तो काउंटर पे बैठा बैंक वाला भी मेरी शकल देखने लगा..
देखो! मेरी सच्ची मुहोब्बत, धैर्य, लालसा, और कर्मठ होने का प्रतीक है यह 1000 का नोट!!
और मेरे बाद उसने भी करवा लिया.
मैंने उसका वेट किया.. (मुझे प्यार हो गया है शायद.)

वो मुस्कुराता हुआ सामने से चला आ रहा था..और मेरे सर के चारो तरफ हाथो में तीर लिए लंगोट पहने छोटे बच्चे उड़ रहे थे.
"My partner is coming in couple of days, if you wish we can go for morning walks.."
उसने सामने खड़े होकर कहा.. और मैं गर्दन उठाए उसे मुस्कुरा कर देख रही थी..
"that means, you're gonna wake me up daily in the morning?"
इसको कहते हैं ट्रम्प कार्ड खेलना.. अब या तो वो मेरी अलार्म क्लॉक बनने के लिए फ़ोन नंबर मांगेगा या मैं खुद ही उसको दे दूँगी.
"haha.. yeah? why not ma'am!.. should I come down your place and ring your bell daily 5am?"
(अबे बौरा गया है क्या, पापा बाँध के बैठा देंगे और कुत्ता छोड़ देंगे तेरे ऊपर)
"haha.. nope.. a phone call would do!!" मैंने डायरेक्ट लाइन देते हुए कहा..
हम साथ साथ चल पड़े.. क्योंकि घर एक ही जगह था और अब तो "पड़ोसी प्रेम" निभाना था!
हालांकि इस दौरान वो काफी बार अपने पार्टनर की बात कर चुका था तो इस बात ने मेरे अंदर क्यूरियोसिटी बढ़ा दी..
..एंड क्यूरियोसिटी किल्स दी कैट! मैंने क्यों पुछा.
"so.. what does your partner do?"
"oh.. he's a business man.. actually we are flying to Ohio next month, he got a job there.." उसने ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा.

घर पहुँचने में अभी वक़्त था और मैंने जानबूझ कर अपने कदम धीमे किए हुए थे..अब तक एक एक पल कितना सुहाना लग रहा था.. न ट्रैफिक की चिल पोँ.. न भिखारियों के छूने से चिढ.. कुछ सुनाई नहीं से रहा था बस दिल में हार्ट शेप बबल ऐसे फुट रहे थे मानो फेसबुक मैसेंजर पर किसी ने लव स्टीकर भेज दिया हो.. पट पट..पट..पट..
और उसकी इस बात ने जैसे मेरे हार्ट शेप गुब्बारे में नुकीली पेन्सिल चुभा दी हो!

what? you're leaving India? मैंने चिढ कर कहा.. your friend is getting job there.. you have your life here, I guess" मैंने बड़ा प्रैक्टिकल और मैच्योर बनते हुए कहा..
(काहे ही मैच्योरिटी बे! कैसे जा सकता है ये.. मतलब अब क्या मुझे सिंगल ही रहना पड़ेगा! कुछ भी कर के इसको रोको भाई...)

देखो! प्यार तो प्यार होता है.. 4 साल का होंय 4 दिन का.. और इसके लिए तो इतनी मेहनत भी की है, अपने संकुचित कन्या वाले अवतार से कूद कर, सामाजिक परिधियों को लांघ कर, और खिसियाई हुई नोटबंदी की लाइन को धोखा दे कर साथ चल रही हूँ. मैं क्रन्तिकारी भावनाओं से अभिभूत थी.."प्रेम क्रांतिकारी.. बहुत ही क्रांतिकारी"

और इसी क्रांतिकारी हथकंडो को अपनाते हुए मैंने नंबर एक्सचेंज कर लिया था.. यह मेरे प्रेम की फ़तेह थी!! मैं तारिक़ फ़तेह महसूस कर रही थी.. और दिल में इसको रोकने का षडयंत्र बुन रही थी.
मेरा दिमाग चाचा चौधरी हो चला था क्योंकि मुझे यह 6 फुटिया साबू चाहिए था.

घर पास आने वाला था..वो बोला" yes, actually.. we don't have a life in India"

देखो! प्यार एक तरफ है और राष्ट्रवाद एक तरफ! मैं देख के लिए लाइन में खड़ी हो सकती हूँ.. इतना तो मैं जियो सिम के लिए नहीं खड़ी हुई.. लेकिन इंडिया को कुछ बोला तो अभी शब्दभेदी बाण चालू होंगे और मैं नमस्ते लन्दन की अक्षय कुमार बन जाऊँगी.

"what do you mean?" मैं वहीँ मेडिकल स्टोर के सामने रुक गई, एक आइब्रो उठा कर आवाज़ में थोड़ी सख्ती लाते हुए पूछा.. (गन लोडिड थी, की अगर यह एंटी नेशनल निकला तो मैं अपने प्यार का गला घोंट दूँगी और साले को अभी कच्चा धारी नाग बना कर शपथ दिलवाऊंगी)
"actually.. we are planning to get married in February in Ohio, society doesn't accept us here"
wait! what! मैंने जो सुना वो मुझे समझ नहीं आया और मेरी शक्ल पके हुए पिलपिले खरबूजे सी बन गई (भाई अंतर्जातीय विवाह कर रहा क्या और खाप पंचायत पीछे आ रही?)
प्यार में चोट लग चुकी थी, पल्ले कुछ न पढ़ा और सिर्फ "getting married" समझ आया..
"We are gay and it's not legal in India" उसने आगे कहा.

यह वो वाली फीलिंग थी 'जनरल कोटे के लास्ट चांस में भी प्रिलिमिनरी क्लियर नहीं हुआ, बाकी चीज़ों के लिए उम्र निकल चुकी है, सिर्फ BA pass डिग्री हाथ में है और कोई प्रोफेशनल एक्सपीरियंस नहीं है'

oh!! (और क्या कहती मैं.. इस ओह में आह थी.. आह.. दिल टूटने की आवाज़ नहीं होती)
"that's great.. in that case you must fly.. I'm happy for you.. yeah.. we live in the socity of hypocrites " मैंने अपनी भाव भंगिमा सुधार कर मीठे स्वर में कहा..
I have many gay friends, and they're happily settled in delhi only.. give a second thought.. our society isn't that bad.
यह मेरी रेस्पोंसिब्लिटी बन गई थी की मैं उसको कम्फ़र्टेबल फील करवाऊँ, कहीं वो यह न सोचें कि मैं उसे जज कर रही हूँ.

उसने मुस्कुरा दिया.. अब यह मेडिकल स्टोर सीमा थी उसके एक तरफ वो और कुछ दूर मैं रहती थी..
अलविदा कहने का टाइम था.. "चलो see you again then.." मैंने कहा.

"तुम और नोट एक्सचेंज करवाने जाओगी? साथ चलेंगे.. I'll call?" उसने पूछा
"nope! I am left with nothing now.."दो तरफ़ा बात कहते हुए मैं मुस्कुरा कर आगे चल दी.
आज सुबह 5 बजे की मिस्ड कॉल थी किसी unknown number से.

मेरा KLPD हो चुका था, "खड़ी लाइन पर धोखा.." मैं किसी की सौतन नहीं बनना चाहती थी..
और एक तरफ़ा प्यार बड़ा दर्द देता है, मैं शाहरुख़ नहीं जो डायलॉग मार कर निकल जाऊँ.
बाय द वे.. वैसाखिनन्दन संस्कृत में गधे को कहते हैं.

(समाप्त)

हिमाद्री बरुआ

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