नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Sunday, April 2, 2017

गोरखनाथ का देशव्यापी प्रभाव: डॉ. बच्चन सिंह


डॉ. जयकृष्ण
पिछले कुछ दिनों से अचानक पूरा भारत 'नाथ पंथ' और 'गोरखनाथ' की चर्चाओं में मशगूल हो गया। बिना इनके बारे में जाने ही तमाम वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के बीच तलवारें खिंच गई हैं। धर्म और उससे जुड़े मुद्दों की वही पुरानी पूर्वाग्रहपूर्ण व्याख्याएं होने लगीं। सोशल मीडिया पर जंग शुरू हो गई कि पहले राजा-महाराजा, राज-पाट छोड़ के संन्यासी हो जाते थे और अब योगी लोग तपश्चर्या छोड़ राजनीति में आ गए। कहने को तो भरत ने भी संन्यासी रूप में राम का खड़ाऊँ रख 14 वर्ष तक शासन किया। 

भारत का इतिहास ऐसे योगियों, संन्यासियों से अटा पड़ा है, जिन्होंने गेरुए चोले में शासन-प्रशासन की नीवें हिला दीं। फ़िलहाल यह चर्चा का विषय नहीं। यदि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को धार्मिक और संस्कृतिवादी मानें तो उन्होंने गोरखनाथ के बारे में कहा कि- 

"शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का भक्तिमार्ग ही था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे।" 

अब आइये एक वामपंथी आलोचक डॉ. बच्चन सिंह के शब्दों में 'नाथ पंथ और गोरखनाथ' को जानने-समझने का प्रयास करें...!                                                                                               



स्रोत: हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास: बच्चन सिंह 
डॉ. बच्चन सिंह 

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