समाज में यूं तो समय-समय पर बहुत सी भावनायेँ प्रबल होती रहती है, परंतु सोशल मीडिया के इस दौर ने जहां समाज को जोड़ने के उपाय दिये हैं वही कुंठित मानसिकता के लोगों को भी प्रश्रय दिया है । इन तमाम कुंठाओं menऑनलाइन ठर्कत्व भी एक प्रबल कुंठा है जिस से सभी को कभी न कभी तो रूबरू होना ही पड़ रहा है । इस कुंठत्व से उपजी ठर्कत्व की भावना ने एक नए प्रकार के विमर्श को जन्म दिया है, इस नवीन प्रकार के विमर्श को विद्वानो ने "ठरक – विमर्श" का नाम दिया है।
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ठर्कत्व के कारण - वर्तमान समय में ठर्कत्व बहुत गहराई तक पैठ बना चुका है, इतना गहरा कि ठर्कत्व से जकड़ा व्यक्ति हेल्प-लेस महसूस करने लगता है। अब सवाल ये है कि ये हेल्पलेसनेस है क्यूँ ? तो इसका पहला कारण तो ये तथाकथित संसारों से जकड़ा समाज है जो व्यक्ति की बहुत सी प्रकृतिक भावनाओं पर भी मर्यादा के नाम पर रोक लगाता है, ये दमित भावनायेँ ही कालांतर में ठर्कत्व जो जन्म देती है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है की युवा अवस्था मे ठरकियों की संख्या अधेड़ और 55+ वालों से बहुत कम होती है । जब कि उम्र बढ्ने के साथ इसमे वृद्धि दिखाई देने लगती है। ऐसे दमित ईच्छा वाले व्यक्ति को किसी ऐसे साथी (ऑब्जेक्ट) की तलाश रहती है जो उसकी क्रियाओं को समझ सके, पर समाज के डर से वह सीधे जा कर अपनी बात नहीं कह पाता और मेघनाथ की भांति छुप छुप कर बादलों के पीछे से वार करता है। परंतु ये दमित ईच्छा इनको हमेशा बादलों के पीछे छिपने भी कहाँ देती हैं ?
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ठर्कत्व के प्रकार :
(1) उत्सुक ठर्कत्व
इस प्रकार के ठर्कत्व में सिर्फ उत्सुकता होती है , जो किशोरावस्था मे पनपती है और समय के साथ इसमे कमी आने लगती है | पर वर्तमान समय मे यह 45+लोगो मे भी पाई जाने लगी है , कुछ लोग इसकेलिए एकाकी परिवारों और सोशल मीडिया को प्रमुख कारक मानते है | यह ठर्कत्व मूलतः कोमल हृदय वाले व्यक्तियों में पाया जाता है जो स्वयम को प्रेम से वंचित माना करते हैं (होते हैं) | 45+ वाले बहुत से लेखक प्रजाति के व्यक्ति यह कहते पाये जाते हैं कि उन्होंने “दाम्पत्य तो जिया है पर प्रेम नहीं जिया” और यह पंक्ति सब से बड़ी फँसाऊ पंक्ति मानी जाती है ।
(2) भावुक ठर्कत्व
इस प्रकार के ठर्कत्व से पीड़ित व्यक्ति इमोशनल ब्लैक-मेलिंग के द्वारा अपने शिकार को फँसाने की कोशिश करते है , जिस के लिए वो सामान्यता खुद को अपने पार्टनर द्वारा सताये जाने या निहायत ही अकेला होने का दावा करता है, जो कि ज़्यादातर मामलों में गलत ही साबित होता है। ( हालांकि कुछ मामलों मे उनके पार्टनर टूटे हाथ-पैर की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते हैं, जो कि इस भावुक ठरकी द्वारा की गई पिटाई से ही टूटे होते हैं । )
(3) बाहुबली ठर्कत्व
उत्तर भारत मे बहुतायत में पाया जाने वाला यह दबंग प्रकार का ठर्कत्व पूरे भारत मे ही दिख जाता है। इस प्रकार का ठर्कत्व धारण करने वाले प्राणी खुद को अति शक्तिशाली समझते हैं अतः स्वाभाविक रूप से यह ठर्कत्व महिलाओं की अपेक्षा पुरुषो मे ज्यादा पाया जाता है। इसके प्रभाव में आकर हिंसक गतिविधियों की संभावना बढ़ जाती है, पीछा करना, छेड़ना , एसिड फेंकना ,बलातसंघ आदि घिनौने अपराध इसी बाहुबली ठर्कत्व के कारण दिन ब दिन बढ़ रहे हैं ।
ऑनलाइन दुनिया मे भी इस का व्यापक प्रभाव है जहा पकड़े न जाने की भावना होने के कारण पुरुष और महिला दोनों ही बराबर रूप से उत्पीड़ित और उत्पीड़क रिपोर्ट किए जा रहे हैं।
(4) पुनःपुनः ठर्कत्व अथवा बारम्बार ठर्कत्व
एक ही व्यक्ति पर यदि बार बार ठरकपन जागे तो उसे बारम्बार ठर्कत्व कहते हैं “या” यदि एक ही व्यक्ति अलग-अलग व्यक्तियों को देख कर बार बार ठरके तो उसे भी बारम्बार ठर्कत्व कहा जा सकता है। इस प्रकार की ठरक रखने वाले व्यक्ति हर जगह पाये जाते हैं । एक विशेष सीमा के बाद ये एक प्रकार की मनोवैज्ञानिक बीमारी ही मान ली जाती है , इस प्रकार की ठरक के शिकार बहुत से लोग साइको किलर बनते भी देखे गए हैं। इस प्रकार का ठर्कत्व यदि समझना हो तो हमे हिन्दी फिल्म डर में शाहरुख के किरदार को समझना होगा।
(5) व्यर्थ ठर्कत्व
ऐसे ठरकी जो प्रयत्न कर कर के असफल होते हैं और अंत मे जानवरों तक को भी नहीं छोड़ते , इस प्रकार में आते हैं। यह एक खतरनाक कुंठा और ऐसे लोगों को हमेशा खुद से और विशेषकर बच्चो से दूर रखा जाना चाहिए।
यहाँ इस बात को समझना आवश्यक है कि ठर्कत्व किसी भी सूरत मे लाभकारी नहीं होता एवं यथा संभव इस से बचने का प्रयास किया जाना चाहिए। ठरकत्व में व्यक्ति का पतन निश्चित है इसलिए सूत्र वाक्य में कहा जा सकता है कि "ठर्कत्व में सिर्फ लुढ़कत्व है"। इस बात पर सदैव जोर रहे कि इस मानसिक रोग से स्वयं को न ग्रसित मारे आसपास किसी को ये रोग है तो उसका इलाज कराया जाये , पर इस रोग से ग्रसित व्यक्तिओं से एक सुरक्षित दूरी अवश्य बना कर रखी जानी चाहिए | इसे समझने के लिए आप खुली नज़र से समाज के घटनाक्रम को देख सकते हैं , जहाँ हर रोज़ एक नया उदाहरण दिख जाएगा जब कोई स्त्री/पुरुष और विशेषकर बच्चा ऐसे ठरकी लोगों का शिकार बनता है । समय आ गया कि हम ऐसे लोगों को पहचान कर समाज मे चिन्हित कर लें और अपने प्रियजनों विशेषकर बच्चों को एक सुरक्षित माहौल प्रदान करें ।
लेखक परिचय : डॉ. गौरव कबीर मूलतः गणित और संख्या से खेलते हैं, गणितीय सांख्यिकी में शोध किया है, पर इनके भीतर कहीं बसता है एक साहित्यिक रसिक ! सिनेमा , पढ़ाई और घूमने फिरने के शौक़ीन हैं ! फिलहाल गोवा इनका ठिकाना है।
gauravkabeer1703@gmail.com
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