नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Wednesday, April 3, 2019

गाँव की ज़मीन-अंजनी कुमार पांडेय

पहले मेरे गाँव मे लोगों के घर छोटे हुआ करते थे । घर के आमने-सामने, अग़ल- बग़ल खुली ज़मीन ख़ूब हुआ करती थी ।  मुझे याद है मेरा खुद का घर छोटा सा था । तीन चार कमरे हुआ करते थे । मिटटी की दीवार हुआ करती थी , लकड़ी के दरवाज़े साँकल वाले और खपरैल की छत । घर के सामने दो तीन छान्ह हुआ करती थी जिसमें एक चारपाई हमेशा पड़ी रहती थी । जानवर भी इन्ही छान्ह के बीच मे कहीं बाँध दिये जाते थे । घर के सामने का द्वार हमेशा बड़ा होता था । उसके सामने ख़ूब जगह होती थी । गाँव के लोग इन जगहों पर घंटों बैठकर ठहाके लगाते थे । कुल मिलाकर घर छोटे और लोग ज़्यादा हुआ करते थे । प्यार भी ख़ूब था । रोज़ की दिनचर्या मे भी पड़ोसी और रिश्तेदारों का सहयोग भरपूर मिलता था ।



खेती ही गाँव की जान हुआ करती थी और जितने ज़्यादा खेत उतना बड़ा नाम । इसलिये खेत ख़ूब होते थे ।बाग़ीचों की भरमार हुआ करती थी । मुझे याद है आम,जामुन ,महुआ और कटहल के ख़ूब सारे बाग़ीचे थे मेरे घर के अग़ल बग़ल । लेकिन आज जब जाता हूँ तो पहले की तुलना मे बाग़ बाग़ीचे कम हो गये हैं । कुछ पेड़ तो अपनी उम्र के साथ ख़त्म हो गये और कुछ को मेरे ही गाँव के लालची लोगों ने काट डाला। । कुछ घर हैं मेरे गाँव मे जो घोर लालची हैं । जब से मै देख रहा हूँ वह केवल गाँव का और गाँव की ज़मीन का नुक़सान कर रहे हैं । पद मे तो वह मेरे बाबा काका लगते हैं लेकिन एक नंबर के लालची हैं । हर समय घर के आसपास ग्राम समाज की ज़मीन क़ब्ज़ा करने मे लगे रहते हैं । धीरे धीरे गाँव के खुले रास्ते संकरे हो गये इन्ही लालची लोगों के चलते । रोज़ कहीं ना कहीं मेड़बंदी करते रहते हैं । हद्द तो तब हुई जब देखते देखते गाँव के खेत और बगीचों के बीच मे ही घर बना लिये इन लोगों ने ।

 पूर्वी उत्तर प्रदेश के सभी गाँवों का लगभग यही हाल है । गाँव सभी अच्छे थे लेकिन हर गाँव मे एक दो लालची गाँववालों ने गाँव की सारी खाली जगह और ग्राम समाज की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लिया है । देखते ही देखते गाँव के बाग़ीचे छोटी छोटी मेड़ वाली जोतों मे बदल गये । कच्चे कच्चे घरों के सामने फैली ख़ाली जगहों पर लोगों ने बड़ी बड़ी ईंट की दीवारें बना लीं और ज़मीन खा गये । दीवार खड़ी होते ही आपसी सहयोग की भावना भी ख़त्म सी हो गई है । 

पहले घर छोटे थे और खेत बड़े , अब घर बड़े हो गये और खेत छोटे ।
लेकिन गांव वाले यह भूल गये हैं कि जब खेत छोटे हो जायेंगे तो गाँव वाले कभी भी बड़े नही हो सकते।


अंजनी कुमार पांडेय 


पुराछात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय 

लेखक भारतीय राजस्व सेवा २०१० बैच के अधिकारी हैं और वर्तमान मे प्रतिनियुक्ति पर विदेश मंत्रालय मे रीजनल पासपोर्ट ऑफिसर के पद पर सूरत मे तैनात हैं ।

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