1)
चांद की सौम्यता
Image Source: Pinterest |
सौम्यता चांद का स्वभाव है
चांदनी शांत और शीतल होती है
सूर्य के लिए दिए से गुजर करने को लेकर
चांद के मन में एक संकोच भाव रहता है
इसलिए वह उतना ही चमकता है
कि कोई यह न कह दे
अपना प्रकाश नहीं
सूर्य से उधार लिया है
फिर भी देखो
कितना इठला रहा है
कैसे ऐंठ रहा है
सूरज
बनने चला है ।
2)
बरसाती नदी
बरसात के दिनों को छोड़कर
साल के बांकि दिनों में
यह नदी कम
और परती पराट ज्यादा दिखती है
आषाढ़ के मेघों की उमड़ घुमड़ सुनकर
पाताल की हदों में जा चुकी नदी
वापस लौटने लगती है
धरातल पर
बारिश की बूंदों के साथ
इसमें लौटने लगता है नदीपन
लौटने लगता है जल
लौटने लगता है प्रवाह
लौटने लगता है जीवन
सावन भादो आते आते
नदी लबालब भरकर उपटने लगती है
सरसता और हरियाली
रचने लगती है अपने किनारों पर
और फिर से उसे नदी समझने लगते हैं लोग ।
3)
स्त्री
स्त्री जितना कहती है
उससे ज्यादा सहती है
जितना जब्त रहती है
उससे कम बहती है
रचती है वह एक पूरी सृष्टि
बस अपने लिए थोड़ी सी जगह
थोड़ी सी जिंदगी नहीं रच पाती
फूल रच लेती है
पर उसमें सुगंध नहीं रच पाती अपने लिए
पिंजरे में बंद रहते रहते
वह उड़ना भूल जाती है
अपना होना भूला देती है
लड़ती है दुनियां से
तो पंखों को लहूलुहान कर उड़ती है
और अपना होना पा लेती है
ईश्वर ने उसे सृजा है
ईश्वर की सृष्टि को
आगे बढ़ा कर
वह ईश्वर का पुनर्सृजन करती है
ईश्वर भी स्त्री का आभारी रहता है
सभी संबंधों की धूरी है स्त्री
उससे जुड़कर ही
अक्षय वट की छांह है स्त्री
एक निरंतर बहती नदी है
सुगंध से पूरी बयार है
रंगों का सबसे सुंदर संयोजन
कला का उत्स
सौंदर्य की सबसे आदिम परिभाषा है स्त्री ।
4)
दुःखी रहना
The sad man Painting by Alma Gallagher |
बहुत कुछ पाकर भी
दुखी रहता है आदमी
सबकुछ न पाने का दुख
जो कुछ छूट गया उसका दुख
इससे ज्यादा पा सकते थे उसका दुख
दूसरों को मुझसे अधिक
और हिस्से से ज्यादा मिल गया इसका दुख
दुःखी रहना स्वाभाविक आदत है मनुष्य की
हंसते तो हम
बमुश्किल कभी कभी हैं
रोते उम्र भर हैं
सुख भी लिखना होता है हमें
तो उसे दुख की स्याही में डूबाकर लिखते हैं
ऐसी ही हैं हम
दुःखी रहने का कोई कारण हो
दुःखी रहने के लिए
ऐसा कोई जरूरी नहीं
बहुत बार
दुःखी रहने की आदत को
निभाने के लिए हम दुःखी रहते हैं ।
_______राजीव कुमार तिवारी _________________________________
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