नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Wednesday, August 16, 2023

'ओह माय गॉड - 2' एक जरूरी फिल्म: डॉ. गौरव कबीर

'ओह माय गॉड - 2' देख कर आया । 

बहुत दिन बाद किसी फिल्म पर लिखने का मन कर रहा है ।  ये एक जरूरी फिल्म है , जिसे बनाया ही जाना चाहिए था और इन्हीं कलाकारों और निर्देशक के साथ बनाया जाना चाहिए था । फिल्म का हर एक दृश्य सम्मोहक है और महसूस किए जाने की मांग करता है । OMG  2 भगवान महाकाल के भक्त कांति शरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) की कहानी है; एक साधारण और मासूम सा आदमी, जो अपने परिवार और बच्चो को बहुत प्यार करता है ।  एक दिन उसके बेटे का एक वीडियो वायरल होता है , जो भयानक बदनामी का सबब बनता है। अनैतिक व्यवहार का आरोप लगा कर  बेटे को  स्कूल से निकाल दिया जाता है। 


पिता को अपनी , व्यवस्था और समाज की गलती का अहसास होता है । 

शर्म एवम दुख से  और situation को संभालने में खुद  को असमर्थ देख कर , कांति (पंकज त्रिपाठी)  अपने परिवार के साथ शहर छोड़ने का फैसला लेते और इस बीच उनका बेटा खुद को अकेला कर आत्महत्या की कई कोशिश करता है पर भक्त के महाकाल ( अक्षय कुमार)  कुछ बुरा नही होने देते । 

 महाकाल अपने भक्त ,  परेशान पिता को संकट से सतत बचाते हैं और  रास्ता भी दिखाते हैं और प्रकरण कोर्ट तक पहुंचता है ।  महाकाल पूरे परिवार और समाज का कल्याण करते हैं। 

कोर्ट रूम में पवन मल्होत्रा जज के रूप में सधा अभिनय करते हैं।  यामी गौतम ने  जान डाल दी है अपने किरदार में। उनकी खूबसूरती का प्रशंसक हूं मैं,  पर फिल्म में कई दृश्यों में तो उनको देख कर आप को उनसे नफरत हो जायेगी और शायद घृणा भी हो जाए  । विशेषकर जब वो दमयंती मुरुद्गल (पंकज त्रिपाठी की बेटी) को इंटरोगेट करती है या जब वो विवेक ( जिसका वीडियो वायरल हुआ ) से सवाल जवाब करती है  । 

पंकज त्रिपाठी का क्या ही कहना । एक बेबस पिता के रूप में उनके चेहरे के हाव  भाव बहुत सहज हैं। महाकाल के भक्त के रूप में तो शायद अभिनय करने की जरूरत ही नहीं पड़ी ।  उनसे ज्यादा सहज अभिनय करने वाला कलाकार हाल फिलहाल हिंदी सिनेमा में कोई नहीं हैं । अक्षय कुमार महादेव के गण के रूप में इतने अच्छे से ढल गए हैं , उनको देख कर श्रद्धा के भाव जाग जायेंगे । फिल्म के कई दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को  झकझोर के रख देंगे । विशेषकर थाने का सीन जब विवेक कहता है "आप सब भी मुझे मारना चाहते हैं क्या ?" 

कोर्ट का हर एक दृश्य , शायद वह भी दृश्य जब पंकज त्रिपाठी कोर्ट रूम को साफ करते हैं , शायद ये रचनात्मक रूपक के रूप में हमारी न्याय व्यवस्था पर एक सटीक प्रहार है । महाकाल की श्रद्धा के बावजूद इंसाफ की इस  लड़ाई में भीम राव अंबेडकर भी रेखाचित्र और तस्वीरों के माध्यम से प्रतीक के रूप में नजर आते हैं । भस्म आरती का दृश्य भुलाए नहीं भूल रहा । 

फिल्म के एक दृश्य  में अक्षय कुमार के मुंह से गदर फिल्म का गाना सुनना तो बहुत ही मजेदार है । सिनेमेटोग्राफी लाजवाब है तो लेखन, संपादन और निर्देशन का क्या ही कहना । 'अमित राय' नाम का विकिपीडिया पर आज की तारीख में कोई पेज नहीं है , पर आप का नाम अब लोग गूगल किया करेंगे। 

फिल्म समय की जरूरत है ,  ओरिजनल भी है।  बेहतर होता अगर इसे A की जगह U/A सर्टिफिकेट दिया जाता।

जय महाकाल


--डॉ. गौरव कबीर