नवाक्षर, गोरखपुर विश्वविद्यालय की दीवारों पर पाक्षिक तौर पर सजने वाली दीवार पत्रिका थी.
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राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर की जन्म जयंती पर
ReplyDeleteकोटि-कोटि वन्दन - अभिनन्दन
जनगण का आह्वान
तानाशाही सरकारों के,
राज बदलते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
सिंहासन के ताज तुम्हारे,
सिर पर हमने बांधे है ।
पांच साल की खैर करों तुम,
वक्त हमारे कांधे है ।।
अभिमानों के ताज शिखर से,
पैरों में गिरते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
गर नही जागी सरकारें अब,
लापरवाही मंहगी होगी ।
फिर तो शासन, सिंहासन की,
सता की कुरबानी होगी ।।
सता की मीनारों के भी,
गुम्बज बिखरते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
तख्ते-ताज उखड़ने में भी,
ज्यादा वक्त नही लगता है ।
धोखे पर धोखा और शोषण,
लोकतंत्र में नही चलता है ।।
आंधी और उपहार समय संग,
जनगण में पलते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
और डेल्टा सी बेटियों, की,
कितनी कुरबानी होगी ।
कब तक गूंगें, बहरों सी यह,
अस्मत अपनी पानी होगी ।।
सोये शेर बियावान में,
भूखे मरते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
समय आ गया है हाथों में,
सूरज की किरणें बनने का।
मानस रखो कुरबानी का,
आगे आकर कुछ करने का।।
हिम्मत वाली बातों से ही,
पहाड़ लूढ़कते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
सता के मद् में आंधे इन,
नेताओं को कुछ नही दिखता ।
सरे-आम घटनाओ ंमें भी ,
लेकिन इनको कुछ नही दिखता ।।
अभिमान के घोड़े थकते ,
इतिहास बदलते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
अब आया है समय साथियों ,
चिन्तन के पथ पर उतरे हम ।
ताकत का अहसास करा दे,
और ठोकरों से उभरे हम ।।
आम आदमी जब जब डोला,
राज उखड़ते देखे है ।
पूर्व निकले सूरज भी,
पश्चिम में ढ़लते देखे है ।।
कवि मुकेश बोहरा अमन
जिला संयोजक
राष्ट्रीय कवि संगम
बाड़मेर राजस्थान
8104123345