सम्पादकीय समूह
एक अरसे से ब्लोगिंग . दर्शन, साहित्य, धर्म, इतिहास, यात्रा, संगीत, फिल्मों में गहरी रूचि । राजनीति का अध्ययन । सीमा-सुरक्षा पर जे.एन.यू. से शोध । सम्प्रति अध्यापन : गलगोटियाज यूनिवर्सिटी, अध्यक्ष: राजनीति शास्त्र विभाग।सेतु-परिचय
shreesh.prakhar@gmail.com
मूलतः गणित और संख्या से खेलते हैं, गणितीय सांख्यिकी में शोध किया है, पर इनके भीतर कहीं बसता है एक साहित्यिक रसिक ! सिनेमा , पढ़ाई और घूमने फिरने के शौक़ीन हैं ! फिलहाल गोवा इनका ठिकाना है।
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आप हिंदी साहित्य के समर्पित अध्येता एवं नीर क्षीर विवेकी रचनाकार भी हैं. साहित्य के साथ-साथ अन्य सभी विभागों एवं विधाओं में लेखन.
jaykrishnaaman@gmail.com
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मै हमेशा सोचता हूँ कि ब्लॉग से लोगों की डायरियों के भीतर रचा जा रहा साहित्य बाहर निकला है. साहित्य यदि समाज का दर्पण है तो इसे रचने-गढ़ने और पढ़ने में समाज का हर व्यक्ति शामिल होना चाहिये. ब्लाग के माध्यम से यह संभव हो सका है. अब कोई स्थापना टिप्पणियों से निर्भय नहीं रह सकती. इसप्रकार लेखन का एक प्रकार का लोकतंत्रीकरण संभव हुआ है. इस स्पेस का लाभ उठाते हुए इस ब्लॉग की प्रस्तावना है. इस ब्लॉग में नवोदित कवियों की रचनाएँ होंगी, समय-समय पर साहित्यिक चर्चाएँ होंगी, सामाजिक मुद्दों पर सहज विमर्श बनेंगे, राजनीति के ऊंच-नीच पर बात होगी।
नवोत्पल के अंतर्जालिक संस्करण की मूलभूत प्रेरणा के दो महत्वपूर्ण आयाम हैं: पहले तो 'सहजता ' और दूसरे 'सरोकार ' ! बोध का स्तर ज्ञान की विशिष्टता को सहज रूप में संप्रेषित कर पाने की क्षमता से निर्धारित होना ही चाहिए।
सहजता, आयामों और शैलियों से इतर तथ्य पर मन जमाये रहती है। तथ्य ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव दोनों ही सामान महत्त्व के हैं। नवोत्पल 'सहजता ' के लक्ष्य के वशीभूत हो अपने उपक्रम को अन्यान्य विचारों का समावेशी मंच बना सके, यही शुभाशा है। दूजे इस शुभाशा में सरोकार भी सधें यही अपेक्षा है। इसमें हम मिलकर ही आगे बढ़ सके सकते हैं।
भाषा, सेतु है; लेखक और पाठक का सम्बन्ध इंटरचेंजेबल व पारस्परिक बना रहे।
विनय मिश्र जी ने इसका विचार किया था, अभिषेक शुक्ल 'निश्छल' ने इसका नामकरण "नवोत्पल साहित्यिक मंच" किया था। चेतना पाण्डेय, प्रेम शंकर मिश्र, रुपेश पाठक, अनुपमा त्रिपाठी, खुशबू, रोशन, अंशुमाली, राजेश सिंह, अमित श्रीवास्तव, जयकृष्ण मिश्र 'अमन', अम्बुजेश शुक्ल, गौरव कबीर आदि ढेरों लोगों ने इसे अपने श्रम-स्वेद से सींचकर इसे सफल बनाया था। उस एक खास समय इतने सुधिजनों के सहज साहचर्य का संयोग बना था, कि यह लगभग असंभव है कि प्रत्येक का नाम लिया जा सके, पर पूरी विनम्रता से उन सभी ज्ञात-अज्ञात लोगों को मै स्मरण कर रहा हूँ जिनके समवेत स्वर ने नवोत्पल को आकार दिया है।
विश्वविद्यालय में साहित्यिक गतिविधियों की बहार छा गयी थी. कविता जिसे एक बोर चीज समझा जाता था, नवोत्पल के कार्यक्रमों में आती भीड़ ने ये साबित कर दिया कि दरअसल कवितायेँ तो जीवंत होती हैं, थोड़ा माहौल होना चाहिए उसके अनुशीलन के लिए. सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि ये रही थी नवोत्पल की कि इसने विश्विद्यालय और बहुधा विश्वविध्यालय के इतर भी यह सन्देश जमा दिया था कि कविता सिर्फ साहित्यकारों की चीज नहीं है, एक आम इन्सान भी अपने रोजमर्रा जीवन की आपा-धापी लिख सकता है और वह लेखन भी कविता का शक्ल ले सकता है. निश्चित ही हम लघु स्तर पर प्रयास कर रहे थे, पर हमारी उस सामयिक सफलता ने हम सभी में टीम-स्पिरिट और हमारी सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास भी क्रमशः करवाया था. यह ब्लॉग उसी नवोत्पल साहित्यिक मंच, गोरखपुर की स्मृति में निर्मित है। इसमे आप अपनी रचनाएँ, अपने विचार, अपने किसी विशिष्ट सामाजिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक अनुभव को नवोत्पल के साथ बाँट सकते हैं !
वाह ! एक-एक शब्द चिंतन के मानसरोवर को प्रिबिम्बित करता हुआ..मुझे गर्व है कि मुझे भी इस सरोवर से आचमन करने का अवसर मिलता रहता है ..बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteHi shreesh...very nostalgic to see navotpal flourishing like it was dreamt ...very few know ,even you :), that i was also part of this manch in its formative years and used at many ocassions...
ReplyDeleteIf you permit i again want to associate myself with NAVOTAPL..with whtever little i can contribute ...
Manish
Allahabad
Hello Bhaiya. Each and every word is encouraging us to the core. Kindly do participate in our yagya. Email us your write up at navotpal@gmail.com.
DeleteSubhan Allah.
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